हिंदुत्व के परचम तले गालियां और बकवास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ भक्तों वाली मुझमें आस्था, मूर्खों का विश्वास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ आता जाता कुछ नहीं, बोलता पर बिंदास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ बैन लेकिन निर्यात में अव्वल मैं गौ माता का मांस हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ खोखली शान बघारने को बदला गया इतिहास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ राम मंदिर के झांसों में फिर चुनाव जीतने का प्रयास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ हूँ फ़कीर, वस्त्र, भोजन, भ्रमण का करता भोग विलास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ अंदर से हूँ पूरा चिरकुट, बाहर से बड़ा झकास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पे बस बना पाया संडास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ डुबा के पूरी अर्थव्यवस्था करता विदेश प्रवास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ खून भले पी लिया देश का, करता पर उपवास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ वोट देने वालों की अक्षम्य भूल का एहसास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ नोटबन्दी में बिफ़रने वालों की पीड़ा का आभास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ बिना ऑक्सीजन मरते बच्चों अकाल त्रास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ बहनों पर डंडे चलवाता, ओढ़े एन्टी रोमियो लिबास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ भूख से जूझते जन की वेदना, पूंजीपतियों का उल्लास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ सीमा पर लड़ते जवानों की शहीदी का अनुप्रास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ शांति, प्रेम, सौहार्द, मानवता सब कर चुका ग्रास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ लोकतंत्र जो पी रहा घूंट घूंट वो विष भरा गिलास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ तिल तिल कर जो मरने लगी वो अच्छे दिनों की आस हूँ हाँ, मैं ही विकास हूँ हाँ, मैं ही विकास हूँ... इस कविता का किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से कोई संबंध नही है।

हिंदुत्व के परचम तले गालियां और बकवास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ भक्तों वाली मुझमें आस्था, मूर्खों का विश्वास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ आता जाता कुछ नहीं, बोलता पर बिंदास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ बैन लेकिन निर्यात में अव्वल मैं गौ माता का मांस हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ खोखली शान बघारने को बदला गया इतिहास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ राम मंदिर के झांसों में फिर चुनाव जीतने का प्रयास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ हूँ फ़कीर, वस्त्र, भोजन, भ्रमण का करता भोग विलास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ अंदर से हूँ पूरा चिरकुट, बाहर से बड़ा झकास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पे बस बना पाया संडास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ डुबा के पूरी अर्थव्यवस्था करता विदेश प्रवास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ खून भले पी लिया देश का, करता पर उपवास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ वोट देने वालों की अक्षम्य भूल का एहसास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ नोटबन्दी में बिफ़रने वालों की पीड़ा का आभास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ बिना ऑक्सीजन मरते बच्चों अकाल त्रास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ बहनों पर डंडे चलवाता, ओढ़े एन्टी रोमियो लिबास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ भूख से जूझते जन की वेदना, पूंजीपतियों का उल्लास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ सीमा पर लड़ते जवानों की शहीदी का अनुप्रास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ शांति, प्रेम, सौहार्द, मानवता सब कर चुका ग्रास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ लोकतंत्र जो पी रहा घूंट घूंट वो विष भरा गिलास हूँ, हाँ, मैं ही विकास हूँ तिल तिल कर जो मरने लगी वो अच्छे दिनों की आस हूँ हाँ, मैं ही विकास हूँ हाँ, मैं ही विकास हूँ... इस कविता का किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से कोई संबंध नही है।
by DrSohil A Momin

October 24, 2017 at 12:38AM
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